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रविवार, 6 फ़रवरी 2011

लखनऊ यात्रा - गाइड माहात्म्य - भाग दो

गाइड साहब ने शुरूआत की इमामबाड़े में प्रवेश के साथ और इमाम साहब के इस सिंहासन से परिचय कराया. इसके बाद इमामबाड़े के अन्दर कई प्रतिकृतियों के बारे में बताया. आगे मध्य में एक रेलिंग से घिरी हुई थोड़ी जगह थी, जिसके आगे आसफ-उद-दौला का मुकुट रखा था. यह बताया कि यह नकली कब्र है, असली नीचे है.
(मुकुट के बारे में पूछने पर पता लगा कि यह प्रतिकृति है, असली तो अंग्रेज बहादुर ले गये). ऊपर की छत, जिसका नाम खरबूजा हाल बताया गया. इसमें ऊपर की तरफ महिलाओं तथा पहरेदारों के खड़े होने के लिये भी स्थान बने हैं. गलियारे में कुछ एक श्वेत-श्याम चित्र भी लगे थे, सन 1925 के. जिन्हें एम०एम०बेग साहब ने खींचा था. इस वर्ष लखनऊ शहर में भीषण बाढ़ आई थी. मैं गाइड साहब से कुछ जानना चाहता था और गाइड साहब फटाफट निपटाने के मूड में लगते थे.
इसके बाद वह हमें निकाल कर भूल-भुलैया (  ऊपर जाने पर कई रास्ते बने हुये हैं. जो एक जैसे ही दिखाई देते हैं,  जिनका ज्ञान न होने पर आदमी को वापस आने में कठिनाई हो सकती है ) दिखाने ले गये. पूरे हाल के ऊपरी सिरे पर अन्दर अन्दर गैलरी बनी हुई है. इस गैलरी में जाने पर सबसे पहले वह छ्ज्जे दिखाई दिये, जहां पहरेदार खड़े रहते थे. तत्पश्चात इस झरोखे से बाहर सड़क तक का नजारा बिल्कुल साफ दिखाई दे रहा था. क्या खूब कारीगरी से बनाये गये थे ये झरोखे कि सैकड़ों मीटर दूर से आने वाले व्यक्ति को पहरेदार दूर से ही देख सकता था. कारीगरों के बारे में पता चला कि वे पर्सियन थे. ऊपर छज्जे से अन्दर हाल का पूरा चित्र. इस हाल की विशेषता है कि एक छोर पर जलाई जाने वाली माचिस की तीली या फाड़े जाने वाले कागज (यह काफी समय से दिखाये जाते हैं) की आवाज सैकड़ों फिट दूर तक एकदम स्पष्ट सुनाई देती है. अन्दर वाली गैलरी में घुमाने के बाद गाइड साहब हमें बाहर वाली गैलरी में निकाल लाये और फिर गैलरी से छत पर. छत से फिर एक अन्य गैलरी में, बिल्कुल पहली वाली गैलरी की ही तरह. गैलरी में हम दो और हमारे दो. यहां से बाहर का एक दृश्य. यहां से दिखाई देता घंटाघर. खंडहर में तब्दील होते इतिहास के झरोखे से दिखाई पड़ रहा है रिनोवेटेड मेडिकल कालेज.
ऊपर एक गैलरी में गाइड साहब ने बताया कि दीवारों के कान कहावत यहां सत्य होती दिखाई देगी. वे कहीं दूर जाकर फुसफुसाये और हमें वह फुसफुसाहट सुनाई दी. ऊपर की दीवारें बड़ी हल्की  और  खोखली  सी हैं. हाथ से हल्के से ठकठकाने पर कम्पन सा महसूस होता है.  हमें यह सब दिखाने के बाद गाइड साहब ने सलाम ठोक दिया. जब हमने बावड़ी दिखाने के लिये अर्ज किया तो उन्होंने फरमाया कि यह रुपये सिर्फ भूलभुलैया के लिये ही चार्ज किये जाते हैं. इसके बाद फिर इनाम. अब एक दिन के लिये हमने भी अपने अन्दर बादशाहत का मजा लेने के लिये उन्हें इनाम देना मन्जूर कर लिया. गाइड साहब से उनकी तनख्वाह के बारे में पूछा तो बताया कि सात सौ तीस रुपये नियत है. बाकी जो पैसे कलेक्ट होते हैं, उनमें से आधे यूनियन ले लेती है (मतलब वे लोग जो वहां रजिस्टर पर दर्ज करते हैं), कुछ ट्रस्ट में जाते हैं, और इस प्रकार पचास रुपये जमा इनाम उनका अपना होता है. मुझे पता नहीं कि क्या सत्य है, लेकिन यदि डेढ़ सौ रुपयों में से कुल पचास रुपये गाइड को दिये जाते हैं तो यह वाकई अन्याय है.
नीचे आने पर दिखाई दिया यह किशोर. हम इस तरह के कम विकसित बच्चों के लिये कुछ क्यों नहीं कर सकते. तमाम संस्थायें हैं गैर सरकारी और सरकारी भी, फिर भी कम विकसित बच्चे हर शहर में इसी गति को प्राप्त होते हैं.  यह भी स्थानीय मान ही है, हम अपने आप को इस स्थान पर रखने की बात शायद कभी सोचना भी पसन्द न करें लेकिन?
उदार पुरुष की सज्जनता की भांति ही इमामबाड़े की विशालता कैमरे के लेंस में सहेजी नहीं जा सकी. इमामबाड़े के इन निवासियों के बारे में ज्ञात करने की व्यर्थ चेष्टा की, कुछ पता न चल सका. नीचे एक किशोरी कपड़े धोने में व्यस्त थी, इस व्यस्तता के चलते या फिर अन्यथा उसने बात करने की प्रक्रिया को निष्फल कर दिया. यहां से निकल कर छोटे इमामबाड़े की तरफ बढ़े, तड़ित चालकों को इस रूप में देखकर पत्नी श्री को बड़ा कुतूहल हुआ. इस इमारत को ताजमहल की तरह ही बनाने का यत्न किया गया है. इसके अन्दर भी एक कब्र है. यहां भी प्रवेश निषेध था. इस इमामबाड़े में तमाम तरह की चीजें इकट्ठी हैं. कांच का कोई झूमर इंग्लैंड से आया है तो कोई बेल्जियम से. किसी को चीन से आयात किया गया है तो किसी को जापान से.यह घड़ी जर्मनी से लाई गयी थी. स्नानागार की लम्बाई-चौड़ाई देखने काबिल है. यहां रखा बाथ-टब. घंटाघर की एक अन्य तस्वीर
अंग्रेजों ने पता नहीं कितनी धन-दौलत भारत से इंग्लैण्ड पहुंचा दी. अधिकतर चीजों के बारे में यही पता चला कि यह तो प्रतिकृति मात्र है, मूल तो इंग्लैण्ड में है. न जाने कितना खजाना अंग्रेज लेकर चले गये.  इन विशाल इमारतों में दर्ज है हमारा इतिहास, इन खंडहरों में दफ्न है हजारों वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति, हमारी समृद्धता. इनके करीब जाकर ही अहसास होता है कि हमारा अतीत कितना गौरवमयी था. इतिहास को जानकर ही हम अपने वर्तमान और भविष्य को सुधार सकते हैं. लेकिन तभी जब हम इतिहास से सबक लें.

1 टिप्पणी:

  1. भूल भूलैया तो फ़िर से घुमा दिया आपने .
    अगर पोस्ट मे ही दो चार फोटो लगा दे लिन्क की वजाय तो अच्छा रहेगा .वह भी कम साईज़ के

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