सुबह-सुबह अखबारों में हेडलाइन थी कि पेट्रोल के दामों में वृद्धि. जोर का झटका जोर से ही लगा. फिर ढ़ाई रुपये प्रति लीटर मंहगा हो गया पेट्रोल. लेकिन मैंनू की? क्यों, भैय्ये, मुझे फर्क क्यों नहीं पड़ा. अरे पहले भी तीन सौ रुपये का खर्च करता था, अब भी तीन सौ रुपये का ही पेट्रोल खर्च करूंगा. मजे की बात यह है कि पेट्रोल की इस मूल्य वृद्धि के नाम पर हर चीज मंहगी हो जायेगी. आटो वाला, चाहे वह गैस से ही आटो क्यों न चलाता हो, बेचारगी जताता हुया धीरे से कम से कम एक रुपया सवारी किराया बढ़ा देगा. और आटो वाला ही क्यों हर चीज, दाल-चीनी-आटा-सब्जी सब के दाम बढ़ जाते हैं. डी०ए० भी बढ़ता है. मैं उनके बारे में सोचता हूं जो हर रोज मुझे अड्डों पर दिखाई देते हैं और उसमें भी दस बजे के आस-पास. दास-प्रथा की तरह बिकते हुये लोग. टाइम अधिक हो गया, इसलिये काम के घण्टे कम और परिणामत: श्रम का मूल्य भी कम. कैसे काम चलता होगा इन लोगों का. निरुत्तर हो जाता हूं, रोज.
आपका स्वागत है इस ब्लाग संसार में . असीमित आसमान है उडते रहे
जवाब देंहटाएंThanks Dhiru ji
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