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सोमवार, 31 जनवरी 2011

लखनऊ यात्रा - गाइड माहात्म्य.

पिछली पोस्ट में गाइड के बारे में लिख रहा था. पहले ही बता चुका हूं कि बाहर ASI ने कहीं भी नहीं लिखा है कि गाइड अनिवार्य है, लेकिन अन्दर जगह जगह पर टंगे बोर्ड कुछ और ही कहानी बयान कर रहे थे.  इस चित्र को देखिये, जहां लिखा है कि भूल-भुलैया में एक स्त्री और एक पुरुष के साथ एक गाइड अनिवार्य है.

शनिवार, 29 जनवरी 2011

मेरी लखनऊ यात्रा

पिछले दिनों लखनऊ जाना हुआ. पत्नी और बच्चों के साथ. तीन दिनों का कार्यक्रम था. बरेली से बाजरिये ट्रेन लखनऊ तक. फिर लखनऊ में रिक्शे से गंतव्य तक. वैसे रिक्शे पर चलना मुझे  बिल्कुल अच्छा नहीं लगता. बैल की तरह ही रिक्शे में लगभग जुता मनुष्य एकाधिक मनुष्य को ढोता हुआ. आदमी के ऊपर आदमी की सवारी.

रविवार, 16 जनवरी 2011

आज से पेट्रोल और मंहगा हो गया..

सुबह-सुबह अखबारों में हेडलाइन थी कि पेट्रोल के दामों में वृद्धि. जोर का झटका जोर से ही लगा. फिर ढ़ाई रुपये प्रति लीटर मंहगा हो गया पेट्रोल. लेकिन मैंनू की? क्यों, भैय्ये, मुझे फर्क क्यों नहीं पड़ा. अरे पहले भी तीन सौ रुपये का खर्च करता था, अब भी तीन सौ रुपये का ही पेट्रोल खर्च करूंगा. मजे की बात यह है कि पेट्रोल की इस मूल्य वृद्धि के नाम पर हर चीज मंहगी हो जायेगी. आटो वाला, चाहे वह गैस से ही आटो क्यों न चलाता हो, बेचारगी जताता हुया धीरे से कम से कम एक रुपया सवारी किराया बढ़ा देगा. और आटो वाला ही क्यों हर चीज, दाल-चीनी-आटा-सब्जी सब के दाम बढ़ जाते हैं. डी०ए० भी बढ़ता है. मैं उनके बारे में सोचता हूं जो हर रोज मुझे अड्डों पर दिखाई देते हैं और उसमें भी दस बजे के आस-पास. दास-प्रथा की तरह बिकते हुये लोग. टाइम अधिक हो गया, इसलिये काम के घण्टे कम और परिणामत: श्रम का मूल्य भी कम. कैसे काम चलता होगा इन लोगों का. निरुत्तर हो जाता हूं, रोज.