मन की व्यथा लिखूँ या कुछ और. हर तरफ वही बेकरारी, बेकसी है. जिससे भी बात कीजिये वही दुखी है. किसी न किसी बात को लेकर. सुख आखिर कहाँ है और किस में है सुख? सुख की परिभाषा क्या है? शायद दुःख की अनुपस्थिति को ही सुख माना जा सकता है. या फिर किसी मन पसंद चीज या चीजों की प्रचुरता को.
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